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एक अभूतपूर्व रोमांचक अनुभूति / केतन यादव

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निरंतर संभावनाओं और विकल्पों में
ढ़ूँढ़ रहा एकनिष्ठ अप्रत्याशित
जहाँ तक जा सकती है अंतिम कल्पना
उसे खींच कर ले आया जा रहा यथार्थ में

टच भर से खुल जा रहा पूरा संसार
हर रहस्य हो रहा अनलॉक
नैनो चिप से नस-नस में छिपी खुरापाती संवेदनाएँ
धर दबोची जा रही हैं अब

मृत्यु टाली जा रहा है इस सदी में
अब अमरता पास आती जा रही है
जो भी तुम्हारा ईश्वर नहीं रच पा रहा
वह सब होता जा रहा मुमकिन यहाँ अब

पेड़ पौधों जानवरों और सूक्ष्म जीवों
कुछ अलग हो पास अब शायद तुम्हारे
भाषा ? पर कितने दिन

डिकोड करने को क्या रहेगा शेष
भाषा में ,
बाइनरी डेसिमल में अँटते जा रहे
सभी व्याकरणिक कलाप
हम जो चाहते हैं और जो बकते हैं
उस भाषा में अब कोई अंतर नहीं रह गया
तो फिर अब बचा क्या
कवि ने कुछ रचा क्या ?

कुछ अलग कुछ नया कुछ मौलिक
उफ्फ कितना कठिन !
कुछ भी तो नहीं
पर कुछ तो हो
जो थोड़ा उलझाए फुसलाए

आँखों के सामने
सब मुमकिन होता जा रहा है
बढ़ता जा रहा हूँ मैं लगातार
एक अभूतपूर्व रोमांचक अनुभूति
खोजते जा रहा निरंतर
स्वादेंद्रियाँ अब
इतनी निष्क्रिय और उदासीन हो रहीं
कि मुझे महसूसने के लिए
कुछ अतिरिक्त जुटाना पड़ रहा ,

एक विस्मयहीन संसार में
रोज बढ़ता जा रहा हूँ मैं
यहाँ कुछ भी होना अब चकित नहीं करता
आश्चर्य होने का षड्यंत्र
खुद करना पड़ रहा

मेरा मनुष्य होना
निरंतर आश्चर्यहीन होता जा रहा है ।