भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक अलग दिन / वरवर राव / उज्ज्वल भट्टाचार्य

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ऐसा नहीं कि मेरा आना बिना सूचना के हो
जो बात कही जानी है हमेशा अनकही रह जाती है
ऐसा नहीं कि अप्रत्याशित घटना हो
लेकिन अनचाहे के अनुकूल होने की तड़प रह जाती है

शब्दों का सिलसिला टूटा नहीं
कोशिशें रुक नहीं गई
और हर अनुभव... आधा-अधूरा

फिर भी यह समस्या नहीं है
यहाँ
समय रुक नहीं गया है
समय सिर्फ़ हमसे
अलग हो चुका है

हमारा उनींदा इन्तज़ार
तारीख़ का बदलना
कड़वे-मीठे विलगाव की
लीपापोती है

हमारा घरौन्दा,
बीस वसन्तों का यह बसेरा
परों के घोंसले की गरमाहट
कड़वे यथार्थ में मिटता हुआ...

अभी कि जब तुम कहते हो, हाय,
क्या वे तुम्हारा आने वाला कल छीन लेंगे ?
आज ही वह दिन है
आज का दिन

परेशान
जब तुम अपनी तड़प में छटपटाते हो
हाय, क्या तुम उनकी दखल में होते हो
जबकि तुम देखते होते हो
मैं ज़ंजीरों से बँधा हूँ

मंज़र,
गिरफ़्तार शब्द
एक टूटे आंसू की तरह
हमारी जवाबी पाँत में
झँझरियों के
वृत्तों और चतुष्कोणों को
चीरता हुआ
मैं सिर्फ़ लाचार
ताक ही सकता हूँ ।
हमें ले जाने वाली वैन गरज़ते हुए
धूल उड़ाती है ।

कोई बदबू सी है
अन्दर नज़र घुमाकर देखता हूँ
राइफ़ल और खाक़ी यूनिफ़ार्म
निगरानी में हैं ।

मेरा वजूद ऐंठता है
पेट्रोल की महक से
मैं बेचैन हूँ
मेरी कराहती अन्तड़ियों में मरोड़ सी उठती है
बाहरी दुनिया में तुम्हारी ओर से
अपनी नज़रें हटाकर
अपने अन्दर
मैं तुम्हें देखता हूँ ।
वक़्त के और मेरे सिर्फ़ दो अंग हैं
दिन और रात
तेज़ काम करने की चाहत के साथ
वक़्त सैकण्ड के काँटे को थाम लेता है
मेरी क़लम मुट्ठी में भींची हुई
वह आगे बढ़ता है
और आगे बढ़ता जाता है.

उस दुश्मन की चार टाँगें हैं
टेलि-कान, टेलि-नज़र, रेडियो-ज़बान
और हथियारों से पंजे ।

और सबसे बढ़कर,
जीते रहने की लालच
एक अकेला ।

इसी की वजह से
उसने अपने दिल की हत्या कर दी,
इसी की वजह से वह उसके कम्पन का गला घोंटता है ।

कैसा सम्वाद
किसी ऐसे के साथ
जिसका दिल ही न हो?

शिकारी कुत्ते की जकड़ती ज़ुबान
उसके गले की पट्टी ।
मालिक के कोंचते हाथ में चाबुक,
मातहतों को दख़ल में लेते हुए ।
कौन सी भाषा इस बयान का अनुवाद कर सकती है
कि सोच पर बेड़ी लगाना भयानक अपराध है ?

दौलत
इनसानी दुनिया को टुकड़े-टुकड़े कर
रखवालों और अपराधियों में बदल देती है
लेकिन जब मैं ज़ोरदार ढंग से ऐलान करता हूँ
कि इसे ख़त्म किया जाय
दौलत का पिंजरा मुझे मुलज़िम कहता है, ठीक है,
लेकिन,
मालिक की नज़र में
मैं एक कम्युनिस्ट हूँ
और मानो कि इससे बदतर कुछ भी नहीं
कि वह आरोप लगाता है
नक्सलवादी है

ठीक से अमल में लाते हुए इस पर डटे रहो
‘द्रोह’ को हमेशा के लिए जारी रखो
सबकी ख़ातिर

अँग्रेज़ी से अनुवाद : उज्ज्वल भट्टाचार्य