भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक अहसास की रंगत के सिवा कुछ भी नहीं / गुलाब खंडेलवाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


एक अहसास की रंगत के सिवा कुछ भी नहीं
ज़िन्दगी ग़म की हक़ीकत के सिवा कुछ भी नहीं

मुस्कुराने को अदा प्यार की समझे हैं हम
यह मगर आपकी आदत के सिवा कुछ भी नहीं

उनकी हर बात पे जाती है यहाँ जान अपनी
लोग कहते हैं, 'नज़ाक़त के सिवा कुछ भी नहीं'

क्या नहीं हाथ में उनके है पर हमारे लिए
दिल में हलकी-सी हरारत के सिवा कुछ भी नहीं

जिसको कहते हैं, गुलाब! आपका दीवानापन
एक रंगीन तबीयत के सिवा कुछ भी नहीं