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एक आँख से / तेज राम शर्मा
Kavita Kosh से
हिरण भर रहा है कुलाँचें
नाप लेनना चाहता है
धरती को एक छोर से दूसरे छोर तक
उसकी भंगिमाएँ
महाकाल से होड़ कर रही हैं
सपने बुन रही हैं
जंगल-जंगल
मनुष्य
उसे एक आँख से देख रहा है
बंदूक की नोक से।