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एक आग / रणजीत
Kavita Kosh से
अभी न जाने कितने दिन तक
खड़ी रहेंगी ये दीवारें
कब तक जाने जुड़ पायेंगी
दिल की टूटी-बिछुड़ी तारें
अभी तलक काशी मैं बैठा, अभी तलक क़ाबे तुम बैठी
एक आग दाबे मैं बैठा, एक आग दाबे तुम बैठी।
कब तक पड़ा रहेगा आदम
रस्मों के गोरख धंधे में
कब तक उलझा, घुटा करेगा
प्यार संस्कृति के फंदे में
अभी जीभ रोके मैं बैठा, अभी होठ चाबे तुम बैठी
एक आग दाबे मैं बैठा, एक आग दाबे तुम बैठी।