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एक आनंद वहाँ भी है जहाँ / आनंद कुमार द्विवेदी
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हो लिया प्यार अब चला जाए
व्यर्थ क्यों बर्फ सा गला जाए
बंद कमरे में कौन देखेगा
आइये दीप सा, जला जाये
उनसे मिलने कि ख़्वाहिशें हैं पर
मिला जाए तो क्यों मिला जाए
दूर हूँ या कि पास हूँ उनके
नापने कौन फासला जाए
जिंदगी पड़ गयी छोटी मेरी
कब्र तक ग़म का सिलसिला जाए
इतना मरहम कहाँ से आएगा
जख्म पर जख्म ही मला जाए
एक ‘आनंद’ वहां भी है जहाँ,
बेवजह आँख छलछला जाए
