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एक आप ही दुःखी नहीं हैं जीवन में / हरि फ़ैज़ाबादी
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एक आप ही दुःखी नहीं हैं जीवन में
कम-ओ-बेश हर शख़्स आज है उलझन में
आज नहीं तो कल देंगे दुःख औरों को
बिला वजह के फूल खिले गर उपवन में
कमरे में तो सबका आना मुश्किल है
चलो साथ सब खाना खाएँ आँगन में
गंगा जल से हाथ मिला तब पता चला
सोना कितना था सोने के कंगन में
तन्हा जीवन जीने वाले क्या जानें
कितना सुख है घर-बच्चों की अनबन मंे
अजब बात है छप्पर ख़तरे में जिसका
खेत उसी के नाच रहे हैं सावन में
‘हरि’ चरणों में आज मुझे ही जाना है
हर गुल ये ही सोच रहा है गुलशन में