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एक आम - एक नीम / दिनेश कुमार शुक्ल

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अबकी सबकी डालों में देखो फल आये
एक अकेले तुम्हीं खड़े हो बिन बौराये,
बारामासी ओढ़े रहो उदासी
ये तो ठीक नहीं है,
सुनो विटपवर !
एक अकेले तुम्हीं नहीं रह गए अकेले,

मुझे याद है कभी तुम्हारी डालों को डालों से छूता
हुआ नीम का पेड़ एक इस जगह खड़ा था
उसको गए बहुत दिन बीते,
पीले-पीले कुछ ललछौंहे स्वाद हींंग का लिए हुए
फल कभी तुम्हारी डालों में झूला करते थे
और चैत में
उसी स्वाद की निंबौरियों के गुच्छे ले कर
नीम टहनियाँ अपनी तुम तक ले आता था,

तुम दोनों का साथ याद है
तोता मैना को कोयल को बादल-बूँदों को बिजली को
वृक्ष युग्म की याद अभी तक बची हुई है तूफ़ानों में,
लेकिन
अब सब भूल चले हैं हींग और मिसरी के
दुर्लभ आस्वादन को,

मोटी-मोटी धूल जमी रहती है तुम पर
दीमक ने भी अपनी बस्ती फैला दी
जड़ से फुनगी तक,
बादल तो अबकी भी तुमको नहला देंगे स्वच्छ करेंगे
तुमको बस इतना करना है
ज्ञान बिराग छोड़ कर फिर से बौराना है
धरती के भीतर से वह रस ले आना है
जिसको पीकर डालों के भीतर की पीड़ा
पीली-पीली मंजरियों में फूट पड़ेगी
फिर आयेंगे तोता मैना
फिर आयेंगे लोग तुम्हारे पास
नीम की याद उन्हें बरबस आयेगी,
याद नीम की बनी रहे इस लिए फलो तुम ।