अरे, उन्नीस फ़रवरी तो तुम्हारा शादी का दिन था 
बर्तन माँजते हुए तुमने एक सुबह चहककर बताया था 
तुमने कहा — आपको भी आना है 
मेरी क़सम, ज़रूर आना है 
क़सम नहीं खाते, प्यारी बच्ची !  — 
मैंने कहा और एक उदास कविता को पढ़ता रहा ।
मैं चाहती हूँ दुल्हन बनूँ तो आप ज़रूर देखिएगा । 
अच्छा, ठीक शाम ६ बजे वाट्सएप पर सिर्फ़ दो मिनट के लिए 
मुझे देखिएगा । 
लाइव हो जाऊँगी मैं । 
ठीक है, 
तुमने तो आज सफ़ाई बहुत मेहनत से की है 
आख़िरी दिन है काम का । 
कार्ड देने तो आऊँगी 
कार्ड छपे पर रखे रह गए ।
हल्दी की रस्म में तुम्हारे पिता नाराज़ होकर घर आए । 
अचानक कई नई माँगें उन्हें सुनने को मिली थीं ।
एक दिन तुमने कहा था न — 
यह रिश्ता टूट ही जाए तो अच्छा है 
लड़का तुमसे फ़ोन पर बात भी नहीं करता है 
तुम उससे ज़्यादा स्मार्ट हो 
स्मार्ट तो तुम हो 
पर उदास होगी 
शाम ६ बजे इस उम्र में भी मुझे रोना आ जाए 
तो वीडियो बन्द कर देना 
अपने पाले हरे तोते को जाकर प्यार करना 
ज्योत्सना !