एक एक क़तरे का मुझे देना पड़ा हिसाब / ग़ालिब
एक-एक क़तरे का मुझे देना पड़ा हिसाब
ख़ून-ए-जिगर, वदीअ़त-ए-मिज़गान-ए-यार<ref>प्रेमी के पलकों की धरोहर</ref> था
अब मैं हूँ और मातम-ए-यक-शहर-आरज़ू<ref>अभिलाषाओं रूपी महल के उजड़ जाने का शोक</ref>
तोड़ा जो तूने आईना तिमसाल-दार<ref>चित्रमय</ref> था
गलियों में मेरी नाश<ref>लाश</ref> को खींचे फिरो कि मैं
जां-दादा-ए-हवा-ए-सर-ए-रहगुज़ार<ref>गली-2 घूमने-फिरने की इच्छा का पीड़ित</ref> था
मौज-ए-सराब-ए-दश्त-ए-वफ़ा<ref>वफा के मरुस्थल की मरीचिका</ref> का न पूछ हाल
हर ज़र्रा मिस्ल-ए-जौहर-ए-तेग़<ref>तलवार की धार की तरह</ref> आबदार<ref>चमकदार</ref> था
कम जानते थे हम भी ग़म-ए-इश्क़ को पर अब
देखा तो कम हुए पे ग़म-ए-रोज़गार<ref>संसार-सम्बंधी ग़म</ref> था
किस का जुनून-ए-दीद तमन्ना-शिकार था
आईना-ख़ाना वादी-ए-जौहर<ref>मिट्टी</ref>-ग़ुबार था
किस का ख़याल आईना-ए-इन्तिज़ार था
हर बरग<ref>पत्ती</ref>-ए-गुल के परदे में दिल बे-क़रार था
जूं<ref>जैसे</ref> ग़ुन्चा-ओ-गुल आफ़त-ए-फ़ाल-ए-नज़र<ref>निगाह के जादू की दुर्घटना</ref> न पूछ
पैकां<ref>तरकश</ref> से तेरे जलवा-ए-ज़ख़म आशकार<ref>प्रकट</ref> था
देखी वफ़ा-ए-फ़ुरसत-ए-रंज-ओ-निशात-ए-दहर<ref>संसार की खुशी और गम के मौके की निष्ठा</ref>
ख़मियाज़ा यक दराज़ी-ए-उमर-ए-ख़ुमार<ref>अंगड़ाई में जिंदगी भर का नशा</ref> था
सुबह-ए-क़यामत एक दुम-ए-गुरग<ref>अकेले भेड़िये की पूँछ</ref> थी असद
जिस दश्त<ref>रेगिस्तान</ref> में वह शोख़-ए-दो-आ़लम<ref>बहुत चंचल</ref> शिकार था