एक एक लोगोॅ केरोॅ पीछू लागलोॅ ईश्वर कत्तेॅ छै / अमरेन्द्र
एक एक लोगोॅ केरोॅ पीछू लागलोॅ ईश्वर कत्तेॅ छै
लोगोॅ केॅ घर एक मिलै नै देखोॅ मंदिर कत्तेॅ छै
दिल के बस्ती मिललै हमरा एकेक करी केॅ रेगिस्तान
खाली बोलै वास्तें ही आँखी रोॅ समन्दर कत्तेॅ छै
की शीशा रोॅ महल बचाबौं, केकरो आय सनकैला पर
एकेक नरी के हाथोॅ में बड़केबड़ पत्थर कत्तेॅ छै
लंका में दिखलाबोॅ नै हमरा रावण रोॅ महल कहाँ
ई लंका में भाय विभीषण रोॅ बोलोॅ घर कत्तेॅ छै
मन में राम बगल में छूरी राखैवाला दोस्त बहुत
एक हृदय-मूँ राखैवाला बोलोॅ ‘मंजर’ कत्तेॅ छै
रहेॅ रहेॅ नै मेघोॅ के; लोरोॅ के बहुत भरोसा छै
जरियो नै देखना छै हमरा खेत ई बंजर कत्तेॅ छै
देखै सफा घिनैलोॅ पानी, टोंटी केॅ पर नै देखै
आरो जमलोॅ काई केॅ - टंकी के भीतर कत्तेॅ छै
मूँ पर कुछ पीछू में कुछुवे बोलैवाला ढेर मतुर
खरा खरौटी बोलवैया जे ऊ अमरेन्दर कत्तेॅ छै
-24.6.91