एक ऐसा भी तो सितारा हो
चाँद-सूरज से भी जो प्यारा हो
ऐसा दरिया मिले तो बतलाना
जिसका बस एक ही किनारा हो
उसका मुँह फेरकर चले जाना
क्या पता, इक नया इशारा हो
ख़ाक़ हसरत की छानता हूँ मैं
ज़िन्दा शायद कोई शरारा हो
सब्र करते रहो क़यामत तक
आख़िरी दाँव ही तुम्हारा हो
क़त्ल का इक सबब अदावत था
दूसरी वज्ह, भाई चारा हो
तेरी ख़ुशियों पर हो न हो 'साहिल'
तेरे ग़म पर तो हक़ हमारा हो