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एक ओर है बाढ़ दूसरी ओर मरुस्थल / कमलकांत सक्सेना

एक ओर है बाढ़ दूसरी ओर मरुस्थल।
भारत की धरती पर अक्सर मिलता मृगजल।

विश्वशान्ति की बात, घात घर में ही होती
नंगे-भूखे रह कर भी भेद रहे बादल।

दोष कौन दे? क्यों? किसे? स्वयं प्यास संत्रास
प्यास-पहेली पनपाती हैं भ्रम-छल प्रति पल।

स्वतंत्रता मिली, ठीक है, लेकिन, बतलाओ
कहाँ गया मित्रवर तुम्हारी आँख का काजल?

उर्वरा धरा, लोग परिश्रमी और विद्वान
फिर भी अपना राष्ट्र क्यों अविकसित रहा कमल?