भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक औरत का जिस्म / पाब्लो नेरूदा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 
एक औरत का जिस्म
सफ़ेद पर्वतों की सी रानें
तुम एक पूरी दुनिया नज़र आती हो
जो लेटी है समर्पण की मुद्रा में
मेरी ठेठ किसान देह धँसती है तुममें
और धरती की गहराइयों से सूर्य उदित होता है

मैं एक सुरंग की तरह तनहा था
चिड़िया तक मुझसे दूर भागती थीं,
और रात एक सैलाब की तरह मुझ पर धावा बोलती थी
अपने बचाव के लिए मैंने तुम्हें एक हथियार की मानिन्द बरता
मानो मेरे तरकश में एक तीर, मेरी गुलेल में एक पत्थर
लेकिन प्रतिशोध का वक़्त खत्म हुआ और मैं तुम्हें प्यार करता हूँ
चिकनी रपटीली काई सा अधीर लेकिन सख़्त दूधिया शरीर
ओह ये प्यालों से गोल स्तन, ये खोई सी वीरान आँखें!
ओह नितम्ब रूपी गुलाब! ओह वह तुम्हारी आवाज, मद्धम और उदास!

ओह मेरी औरत के जिस्म, मैं तुम्हारे आकर्षण में बंधा रहूँगा
मेरी प्यास, मेरी असीम आकांक्षाएँ मेरी बदलती राह!
उदास नदियों के तटों पर निरन्तर बहती असीमित प्यास
जिसके बाद आती है
असीमित थकान और दर्द.

सन्दीप कुमार द्वारा अँग्रेज़ी से अनूदित