भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक औरत की हँसी / फ़हमीदा रियाज़

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पथरीले कोहसार के गाते चश्मों में
गूँज रही है एक औरत की नर्म हँसी
दौलत ताक़त और शोहरत सब कुछ भी नहीं
उस के बदन में छुपी है उस की आज़ादी

दुनिया के मा’बद के नए बुत कुछ कर लें
सुन नहीं सकते उस की लज़्ज़त की सिसकी
इस बाज़ार में गो हर माल बिकाऊ है
कोई ख़रीद के लाए ज़रा तस्कीन उसकी

इक सरशारी जिस से वो ही वाक़िफ़ है
चाहे भी तो उस को बेच नहीं सकती
वादी की आवारा हवाओ आ जाओ
आओ और उस के चेहरे पर बोसे दो

अपने लम्बे-लम्बे बाल उड़ाती जाए
हवा की बेटी साथ हवा के गाती जाए