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एक और उठ, वीर चला / प्रेमलता त्रिपाठी
Kavita Kosh से
अमन चैन हित, एक और उठ, वीर चला।
मिथ्या घातक, हृदय बींधता, तीर चला।
तड़प रही है, वसुधा अपनी, करे रुदन,
पायल चूडी़, कंँगना खनके, हीर चला।
देश जल रहा, बढी़ त्रासदी, झूठ नहीं,
भीगा आँचल, विलख उठी माँ, धीर चला।
कुसुमित क्यारी, अँसुवन जल से, सींच उठी,
चिता सजायी, नयन बहाये, नीर चला।
रहे जागती, पीडा़ अपनी, मौन कहे,
देश प्रेम ये, सच्चा मन का, मीर चला।