एक और मृत नगर / आलोक श्रीवास्तव-२
बीते हुए नगरों के ध्वंस में
रोशनी तलाशने आया हूं
हार कर, थक कर, टूट कर
एक मृत नगर, मृत सभ्यता, मृत समाज
मृत वाक्यांश बोलते मृत नागरिकों का
एक भरा-पूरा आडंबर-लोक छोड़ कर
इस ध्वंस में
अदृश्य हुई नदियां, खत्म हो गई बस्तियां
भग्न पथ ढूंढ़ता हूं
ढूंढ़ता हूं अपनी प्रिया के पावों के निशान यहां
टहनियों में अटका उसका धानी आंचल
और हवाओं में उड़ते
उसके केश ...
क्या अब भी उसकी आंखों में
ठहरा है वह मृत नगर ?
क्या अब भी उसके पावों में ज़ंजीरें हैं ?
क्या अब भी
जनांतिक से आते
उड़ती अयालों वाले अश्वों पर
राजकुमारों के दल
उसके रूप से खिंचे
सौगातें लिए चले आ रहे हैं ?
वह भरा-पूरा आडंबर-लोक
क्या चिरकाल के लिए
उसके अस्तित्व में समाहित हो चुका है ?
उसकी पगछापों का पीछा करते
एक वन में आ निकला हूं
हिल्लोलित जल वाली नदी है सामने
वर्तुलाकार तरंगों पर
किंतु कोई
श्यामा नहीं
क्या बीते हुए नगरों के ध्वंस में
रोशनी नहीं
एक और मृत नगर
एक और मृत सभ्यता
एक और मृत समाज
ख़त्म हो जाने के बाद
शेष रह जाता है ?