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एक और रात / लाल्टू

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दर्द जो जिस्म की तहों में बिखरा है

उसे रातें गुजारने की आदत हो गई है
रात की मक्खियाँ रात की धूल

नाक कान में से घुस जिस्म की सैर करती हैं
पास से गुजरते अनजान पथिक

सदियों से उनके पैरों की आवाज गूँजती है

मस्तिष्क की शिराओं में।
उससे भी पहले जब रातें बनीं थीं

गूँजती होंगीं ये आवाजें।

उससे भी पहले से आदत पड़ी होगी

भूखी रातों की।