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एक कविता अशेष के लिए / भारत भारद्वाज
Kavita Kosh से
बच्चा बन्दूक उठाता है
बादलों पर निशाना लगाता है
अब बारिश होगी ।
बच्चा क़लम उठाता है
और खींच देता है लकीर
’मिथक और यथार्थ’ पर
डाँटने पर कहता है —
मुझको भी लिखना आता है, पापा !
बच्चा ज़िद करता है
सिनेमा देखने की
और हॉल में
सो जाता है गहरी नीन्द में
चान्द को बादलों से आसमान में घिरते देखकर
बच्चा पूछता है —
क्या चान्द को घेरे हैं बादल ?
फिर जवाब का इन्तज़ार किए बिना
स्वतः बोल उठता है —
चान्द ज़मीन पर गिर जाएगा, इसीलिए न, पापा ?
बच्चा नीन्द में सपना देखता है
और चिल्ला उठता है —
पुलिस !
जेब से गिरा पैसा उसकी बग़ल में है ।