एक कविता नदी के लिए / राकेश रोहित
हम सबके जीवन में
नदी की स्मृति होती है
हमारा जीवन
स्मृतियों की नदी है ।
नदी खोजते हुए हम
घर से निकल आते हैं
और घर से निकल हम
खोई हुई एक नदी याद करते हैं ।
नदी की तलाश में ही कवि निलय उपाध्याय
गंगोत्री से गंगासागर तक हो आए
अब एक नदी उनके साथ चलती है
अब एक नदी उनके अन्दर बहती है ।
बचपन में कभी
तबीयत से उछाला एक पत्थर<ref>एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो -- दुष्यन्त कुमार</ref>
नदी के साथ बहता है
और
नदी की तलहटी में कोई सिक्का
चुप प्रार्थनाओं से लिपटा पड़ा रहता है ।
सभ्यता की शुरूआत में
शायद कोई नदी किनारे रोया था
इसलिए नदी के पास अकेले जाते ही
छूटती है रुलाई
और मन के अन्दर
कहीं गहरे दबा प्यार वहीं याद आता है ।
नदी किनारे अचानक
एक डर हमें भिंगोता है
और गले में घुटता है
कोई अनजाना आर्तनाद ।
कुछ गीत जो दुनिया में
अब भी बचे हुए हैं
उनमें नदी की याद है
अब भी नदी की हवा
आकर अचानक छूती है
तो पुरखों के स्पर्श से
सिहरता है मन !
दोस्तों !
इस दुनिया में
जब कोई नहीं होता साथ
एक अकेली नदी हमसे पूछती है --
तुम्हें जाना कहाँ है ?