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एक कविता पैदल चलने के लिए-3 / प्रभात

पेड़ पर फूटा नया पत्ता आशा का है
ठिठुरती नदी पर धूप का टुकड़ा आशा का है
रेत की पगडंडी पर पाँव का छापा आशा का है
तुम्हारे चेहरे को आकर थामा है जिन दो हाथों ने आशा के
दुनिया में क्या है जो आशा का नहीं है
सभी-कुछ तो आशा का है