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एक कविता ही छुट गई / राजकिशोर राजन
Kavita Kosh से
इतना कैसे मिलता वक़्त तुम्हें
जो लिखते कविताएँ
जबकि घर-परिवार, दुनिया की आपाधापी में
किसी को साँस लेने की फुर्सत नहीं
सब कुछ सह लेता हूं मैं एक कविता छोड़ कर
मुझे हँसी आई
उस रसूखदार आदमी के प्रश्न पर
और मैंने कहा, गनीमत है
कम से कम
एक कविता तो आप से छुट गई
दोस्तो,
इस दौर में, हमारे लिए
यह बहुत बड़ी ख़बर है
अकाल में झमाझम बरखा जैसी
कि ताक़तवर, रसूखदार लोग
सब कुछ भले अपनी हथेली में भर लें
वे रहते कविता से सात बाँस दूर
एक यही चीज़ उन्हें भीतर से
नाकाबिले बर्दाश्त है
नहीं तो ज़्यादातर चीज़ों की तरह
कविता भी बिकने लगती बाज़ार में।