एक कवि मिलता है दूसरे कवि से
जैसे बीड़ी से मिलती है तिल्ली की आग
पूनम की रात का वह क्षण
आँखें भिंच जाती हैं तब —
देखकर
चांद के सफ़ेद चमकीले पँख
नशे का उतरता है नक़ाब
और कवि मिल लेता है
बीच चौराहे पर, अपने ही प्रतिबिम्ब से !
एक तितली भी साथ-साथ
बैठ चुकी होती है फूल पर
भूलकर ख़याल वक़्त का...
मूल बांगला से अनुवाद : तनुज