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एक किरन बस रौशनियों में / ज़ेब गौरी
Kavita Kosh से
एक किरन बस रौशनियों में शरीक नहीं होती
दिल के बुझने से दुनिया तारीक नहीं होती.
जैसे अपने हाथ उठा कर घटा को छू लूँगा
लगता है ये ज़ुल्फ़ मगर नज़दीक नहीं होती.
तेरा बदन तलवार सही किस को है जान अज़ीज़
अब ऐसी भी धार उस की बारीक नहीं होती.
शेर तो मुझ से तेरी आँखें कहला लेती हैं
चुप रहता हूँ मैं जब तक तहरीक नहीं होती.
दिल को सँभाले हँसता बोलता रहता हूँ लेकिन
सच पूछो तो 'ज़ेब' तबीअत ठीक नहीं होती.