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एक किरन / श्रीप्रसाद
Kavita Kosh से
रेशम जैसी हँसती खिलती
नभ से आई एक किरन
फूल-फूल को मीठी-मीठी
खुशियाँ लाई एक किरन
पड़ी ओस की थीं कुछ बूँदें
झिलमिल-झिलमिल पत्तों पर
उनमें जाकर, दिया जलाकर
ज्यों मुसकाई एक किरन
लाल-लाल थाली-सा सूरज
उठकर आया पूरब में
फिर सोने के तारों जैसी
नभ में छाई एक किरन
सूरज लाल, बना फिर पीला
ढेरों किरनें फूट पड़ीं
लेकिन इन सबके भी पहले
जगमग आई एक किरन
एक किरन से बदल गया जग
चिड़ियाँ गातीं गीत चलीं
हवा चली, हिल उठे पेड़ सब
सबको भाई एक किरन
सूरज आया दिन मुसकाया
जागी दुनिया, भोर हुआ
नया-नया मन, ताजा जीवन
सबको लाई एक किरन।