भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक किसान का मरना / राकेश कुमार पटेल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जब एक किसान अपने खेत में
जेठ की लू भरी दोपहरी में
बकरियाँ चराते हुए
फटे प्लास्टिक के जूते पहने
झीने गंदे कुरते में
पुराने, गंदे गमछे की पगड़ी बाँधे

तड़प-तड़पकर मर जाता है तो
वह अकेले नहीं मरता,

बल्कि सारी इंसानियत मर जाती है
सारी सभ्यता, सारी संस्कृति मर जाती है
और एक राष्ट्र के रूप में हम सब मर जाते हैं।