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एक कोस गेलै हे कोसी माय / अंगिका

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

एक कोस गेलै हे कोसी माय,
दुई कोस गेलै हेऽ
तेसर कोस बिजुबन सिकार हेऽ
बघबो नै मारै हेऽ कोसी माय,
हरिणों नै मारै हेऽ
चुनि-चुनि मारै छै हेऽऽ मजूर हेऽ
सात सय मजूरबा हे कोसी माय
मारि अयले हेऽ
सात सय मजूरनी कयलें राड़ हेऽ
हकन कानै छै कोसी माय
बन के मजूरनी
कोसी मैया बारी बेस हरले सिन्दूर
नै हम खैलियो कोसी मैया
खेत खरिहानमा
नैय हम कैलियो लछ अपराध
बखसु बखसियौ कोसी माय
सिर के सिन्दूरिया
मैया बखसि दियौ सिर के सिन्दूर
जब तोरा हम बखसबो
सिर के सिन्दूरिया
हमरा के की देबे इनाम मजूरनी
जब तुअ बखसबे कोसी माय
सिर के सिन्दूरिया
भरि राति नाचबा देबौ देखाय
राति नाचबा देखायब
होयत भिनसरबा बोलिया देबौ सुनाय
चुटकी बजाय कोसी माय मजूरा के जियाबे
खुसी गे भेलौ मैया बन के मजुरनी
भरि राति आगे मजुरनी नचबा देखाबै
होयत भिनसरबा बोलिया देय सुनाय
गाबल सेबक जन दुहु कल जोड़ि
विपत्ति के बेरिया मैया
होहु न सहाय ।