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एक ख़याल / शलभ श्रीराम सिंह
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एक ख़याल आया है ...
मन्दिर की तरह टूटा हूँ अभी-अभी
गिरा हूँ मस्जिद की तरह
मकान की तरह जला हूँ अभी-अभी मैं ।
एक ख़याल आया है ...
चाकू की तरह चला हूँ अभी-अभी
उछला हूँ ख़ून की तरह
प्राण की तरह निकला हूँ अभी-अभी मैं ।
एक ख़याल आया है याद की तरह
दंगा और फ़साद की तरह आया है एक ख़याल
ख़तरनाक वारदात की तरह
एक ख़याल आया है अभी-अभी
याद की तरह आया है ख़याल...।