एक ख़ुदक़ुश शाम की अफ़वाह / तुर्गुत उयार / निशान्त कौशिक
थोड़ा थक चुकी एक शाम
हरेक चेहरे से हर रोज़ टकराकर
थक चुकी एक शाम
अस्पतालों में
किसी साहब-सा बर्ताव हुआ मेरे साथ
और ख़ुदकुशी की अफ़वाह
साहिल-साहिल फैल गई
छोटी-सी एक शाम
ज़रा-सी सर्द एक शाम
घोड़ों संग तितलियों की दौड़ में
थक चुकी एक शाम
डाकघर में मुहरबन्द हो चुके सब ख़त
चौपालों पर चन्द गीत गुनगुनाए गए
एक आदमी, एक औरत का दरवाज़ा पीटता रहा
छोटी-सी एक शाम
जिसका ज़िक्र करूँ
बहादुराना लगता है
भीतर थोड़ा-बहुत घुल-मिल चुके
एक बादल और एक काग़ज़ी रूमाल के दरमियान
थोड़ा थक चुकी एक शाम
क्या करूँ, कहाँ छोड़ दूँ अपनी अफ़सुर्दगी ?
एक तरफ़ पेड़ू में मेरे जमा है ताक़त अथाह
और दूसरी तरफ़
थक चुकी यह शाम
हर शै भुलाई जा चुकी थी
इस बीच
पागलों-सा चिपटाए हुए अपनी छाती से
गोली खाए एक ज़ख़्मी तेंदुए वाली
छोटी-सी एक शाम
कौन मिला है सच से
मेरे जिए हुए अनन्त पर
चौपाल जमी, चर्चा हुई
छन्द-बहर से कसे वाक्य
ख़र्च हुए उदासी पर
छोटी-सी एक शाम
जो भी काम लिया
झिझक में किया तमाम
कौन मिला है सच से
जल-तराज़ू का तंग पैमाना
फ़ोटोग्राफ़ खींचे गए
जश्न हुए, मैं नहीं गया
छोटी-सी एक शाम
इतनी छोटी
कि एक शाम
अपने चेहरे को मैंने
पानी पर पड़ा हुआ पाया
साहिल तो होते ही इसीलिए हैं
थोड़ा थक चुकी एक शाम
हलकी सर्द एक शाम
मूल तुर्की भाषा से अनुवाद : निशान्त कौशिक