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एक ख़ुदा पर तकिया कर के बैठ गए हैं / अब्दुल हमीद

एक ख़ुदा पर तकिया कर के बैठ गए हैं
देखो हम भी क्या क्या कर के बैठ गए हैं

पूछ रहे हैं लोग अरे वो शख़्स कहाँ है
जाने कौन तमाशा कर के बैठ गए हैं

उतरे थे मैदान में सब कुछ ठीक करेंगे
सब कुछ उल्टा सीधा कर के बैठ गए हैं

सारे शजर शादाबी समेटे अपनी अपनी
धूप में गहरा साया कर के बैठ गए हैं

लौट गए सब सोच के घर में कोई नहीं है
और ये हम के अँधेरा कर के बैठ गए हैं