भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक खाली कोख / एलिसन सोलोमन / प्रेमचन्द गांधी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैंने नहीं देखी कोई कविता
मासिकधर्म की बदसूरती के बारे में
वैसे ऋतुचक्र चमत्‍कारिक होते हैं
चंद्रमा की चाल नियंत्रित रखती हैं हमारी जिंदगियां
रक्तिम लाल फूलों के सुंदर अवशेष
वे हमारे स्‍त्रीत्‍व की निशानियां हैं
हमारी शक्ति
कुदरत के साथ हमारा पक्‍का रिश्‍ता


मैंने कभी नहीं देखी कोई कविता
जो बताती हो उस उत्‍सुक इंतज़ार को
ना पाने की नहीं
बस रक्तिम निशान पाने की
बारंबार फिर से
यह जानते हुए कि मासिकधर्म
चमत्‍कारिक नहीं हैं
गहरे लाल फूल सिर्फ निशानी हैं
एक खाली कोख की

मैंने कभी नहीं पढ़ी कोई कविता
जो बताती हो कि
मासिकधर्म एक मानसिक अवस्‍था है
यह कि एक खाली कोख भी
बहुत खूबसूरत होती है
जब मैं देखती हूं ये कविताएं
मैं जान जाती हूं कि
बांझ स्‍त्री भी लिखती है कविताएं.