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एक गणिका ज़िन्दगी / प्रेम शर्मा
Kavita Kosh से
(गोमुख से सोनागाछी तक)
क्या पाती
क्या ख़त लिखूँ
कौन भला
दिलदार,
देह
बिरानी-सी लगे
धारा
अगम-अपार
बन झुलसा
झुलसे कवल,
पंछी उड़े
अकास,
मन
मन्दिर
खण्हडर हुए,
जनम-जनम की
आस,
जाने क्या
रचना रची,
क्या विधि
लिखा लिलार,
ना बाबुल की
देहरी
ना कोउ
कन्त हमार ।
प्राणों को
घुँघरू मिले,
अधरों को
आलाप,
गजरे
मुजरे
महफ़िलें
सारंगी के तार,
नगर-वधू-सी
ज़िन्दगी
नाची
चौक-बज़ार ।
(आजकल, नवम्बर, 1998)