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एक गम्भीर आवाज़ का आदमी / दिलीप चित्रे / तुषार धवल

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एक गम्भीर आवाज़ का आदमी
टहलता है किसी अपार्टमेण्ट में
लहसुन सा महकता।

वह नग्न है
और उसका शिश्न तना हुआ।
वह बेचैन है।

बहुत दिनों से वह रह रहा है
सम्भोग से परे।

एक नए रूप का विकराल जीवन
उसके भीतर आकार ले रहा है।

उसे नहीं पता है अभी तक कि
कैसे उसका सामना किया जाए।
वह रहस्यमय ढँग से बड़ा हो रहा है
स्फटिक की तरह।

वह आदमी दर्द करता है।
क्या कोई और हावी हो रहा है ?
क्या मुझे मानसिक सन्तुलन की
रक्षा के लिये लड़ना चाहिए?

विवेक में हुए छेद से
उसने देख लिया है कुछ
जो उस पार झिलमिला रहा है।

अन्धेरे में फ़ास्फ़ोरस-सी चमकती एक उपस्थिती।
उसे भूख लगती है।
वह एक अण्डा फोड़ कर
तवे पर डालता है।

ब्रम्हाण्ड फूट निकलता है।
बुल्स आई —
एक दम सटीक।
कल-पुर्जे मन्द पड़ जाते है।
 
जीवन एकायामी है।
इन ज्यामितियों से बाहर
आँख के लिए कोई जगह नहीं है।

धड़कनों के पिंजरे में
तुम्हारा अपना ही रहस्य
एक बाघ है।

अँग्रेज़ी से अनुवाद — तुषार धवल