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एक गहरा अहसास / किरण मल्होत्रा
Kavita Kosh से
कभी लगता
जैसे पूरी ज़िन्दगी
कभी न
ख़त्म होने वाली
अमावस की
रात है
सैकड़ों सितारे
टिमटिमा रहे
लेकिन
चांद के
न होने का
एक गहरा
अहसास है
जो चीज़
खो जाती है
फिर क्यूँ वह
इतनी ज़रूरी
हो जाती है
शायद
पूरी ज़िन्दगी
कुछ खोई हुई
चीज़ों के
पीछे की भटकन है
बाहर मुस्कुराहटें
भीतर वही
तड़पन है ।