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एक गुरूजी के दू ठो सिस / छोटे लाल मंडल

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एक गुरूजी के दू ठो सिस
एक दिन भेलै दोनू में रिस,
सेवा में हिस्सा वरावर कैलकै
एक एक टांग के वांटी लेलकै।

गुरूजी छेलै नीनों में भोर
एक टैग चढ़ि गेलै दोसरी ओ,
एक चेलां-जल्दी सें भावठो समेटी ले,
तोड़वों टांग तोय वूझी ले।

फेनू गुरूजी बदलै करवट,
दोसरों चेलवा करै झटपट
दोसरें टंगवा देलके मचोरी के,
गुरूजी चिचयावै दवोरी के

यहाँ दरदों से गुरूजी छटपट छै,
तहाँ चेलवा वापस में झगड़ै छै,
माथों फोड़व्वल चेलवां कैलकै,
वही खंटिया गुरूजी पकड़नें छै।

मुरखा नौकर छेलै वेढंग
गुरूजी केरो टुटलै टेंग,
दरद वुझावे अंगे अंग
सदा के लेली भेलै अपंग।