भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
एक घड़ी न मिलते ता कलियुगु होता / अर्जुन देव
Kavita Kosh से
एक घड़ी न मिलते ता कलियुगु होता।।
हुणे कदि मिलीए प्रीअ तुधु भगवंता।।
मोहि रैणि न विहावै नीद न आवै बिनु देखे गुर दरबारे जीउ।।1।।
हउ घोली जीउ घोलि घुमाई तिसु सचे गुर दरबारे जीउ ।।2।।