एक चादर-सी उजालों की तनी होगी
रात जाएगी तो खुलकर रोशनी होगी।
सिर्फ वो साबुत बचेगी ज़लज़लों में भी
जो इमारत सच की ईंटों से बनी होगी।
आज तो केवल अमावस है‚ अँधेरा है
कल इसी छत पर खुली-सी चाँदनी होगी।
जैसे भी हालात हैं हमने बनाये हैं
हमको ही जीने सूरत खोजनी होगी।
बन्द रहता है वो खुद में इस तरह अक्सर
दोस्ती होगी न उससे दुश्मनी होगी।