यह पिछली रात की बात है
उससे भी पिछली
पिछली उससे भी
चट्टान रखकर द्वार पर
भागते हुए विलीन हुई मैं
दुनिया के शोर में
लौटती तो द्वार के बाहर
खाती-पीती सो जाती
मेरे कानों में दुनिया का शोर है
मेरे पाँवों में पहिए
गिरती-पड़ती-लड़खड़ाती चलती हूँ
सब तरफ़ मज़बूत इन्तज़ाम था
पेड़ भी नहीं कोई दूर-दूर तक
दाख़िल हुई जाने कैसे उस संकरी जगह में
एक चिड़िया बहुत देर से खटखटाती है
अपनी चोंच से मेरी दीवारें...।