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एक चिड़ैया पोसल्हाँ हमै / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

माँ कहती है कि पंछी<ref>बेटा</ref> को खिला-पिलाकर बड़ा किया। वह उड़कर कहीं चला गया। लौटने पर माँ ने पूछा कि रात तुमने कहाँ बिताई? बेटे ने उत्तर दिया- ‘माँ, दिन तो मैंने राजा की फुलवारी में और रात ससुराल में बिताई। तुम्हारी तरह मुझे सास मिली है, जिसने अपनी बेटी की शादी मुझसे कर दी तथा मुझे लाड़-प्यार से रखा। सालो-सलहज भी अनमोल मिली है।’ माँ को पुत्र के उत्तर से निराशा हुई कि जिसे मैंने दस महीने तक गर्भ में ढोया, खिला-पिलाकर, पाल-पोसकर बड़ा किया, उसने मेरी बड़ाई कभी नहीं की; लेकिन आज ससुराल गया है, तो अपनी सास की बड़ाई कर रहा है।
माँ ने बेटे पर अपने स्नेह का अक्षुण्ण अधिकार चाहती है। उसे यह सह्य नहीं कि बेटा उसके सिवा किसी दूसरी का मातृत्व स्वीकार करे।

एक चिड़ैया<ref>चिड़िया</ref> पोसल्हाँ<ref>पोसा; पालन किया</ref> हमैं, तेल मधुरे<ref>मिठाई</ref> खिलाय<ref>खिलाकर</ref>।
सेहो चिड़ैया उड़ि गगन गेलअ<ref>गया</ref>, नहिं जानौं कहाँ गेलअ॥1॥
अम्माँ पुछलकौ<ref>पूछा</ref> बेटा रे कवन बेटा, कहाँ गमौले<ref>गँवाया</ref> सारी रात।
दिन गमैल्हाँ<ref>बिताया; गँवाया</ref> अम्मा राजा फुलबरिया, राति गमैल्हाँ अपने ससुरार॥2॥
तोहरऽ<ref>तुम्हारे</ref> ऐसन अम्माँ गे सासु मिललऽ<ref>मिली; मिला</ref> पियारी, जिनि देलअ<ref>दिया</ref> गौरी<ref>गौरी; यहाँ दुलहन से तात्पर्य है</ref> बिहाय<ref>विवाह</ref>।
तोहरऽ ऐसन अम्माँ गे सारी<ref>साली</ref> पियारी, जिनि देलअ खिलिया<ref>खिल्ली; पान का बीड़ा</ref> लगाइ।
तोहरऽ ऐसन अम्माँ गे सरहज पियारी, जिनि देलह बिनिया<ref>बेनिया; पंखा</ref> डोलाय॥3॥
छे महीना बेटा गरभ<ref>गर्भ</ref> राखलौं<ref>रखा</ref>, दसो महीना अयतार<ref>अवतार</ref> करलौं।
बतीसो<ref>बत्तीस</ref> सुअ<ref>धार से</ref> दुधवा पिलैलौं<ref>पिलाया</ref>; तैयो<ref>तोभी</ref> ना करले<ref>करता है</ref> बराय<ref>बड़ाई</ref>॥4॥

शब्दार्थ
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