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एक चिथड़ा सुख हमारे पास भी होता / रामकुमार कृषक

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 एक चिथड़ा सुख<ref>निर्मल वर्मा का एक उपन्यास ।</ref>
हमारे पास भी होता,
भला फिर क्या नहीं होता !
 
भोर होती
और हम उसको पहनते
घूमते - तनते
बटन दो टाँककर
दफ़्तर पहुँचते
यार लोगों पर जमाते रौब
अपना जौब मामूली सही ,
होता !

साँझ होती
और हम उसको उठाते
झाड़ते ख़ुद को
किसी से लिफ़्ट पा
घर - घाट लगते
केक के संग भूख जाते चाट
अगला ठाठ कम होता भले
होता !

रात होती
और हम उसको बिछाते
ओढ़ते - उड़ते
मगर फिर चौंककर
जगते - सहमते
चोर तो कोई नहीं है पास
यह अहसास त्रासद ही सही
होता !

शब्दार्थ
<references/>