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एक चिरइया कानी / कुमार रवींद्र
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ग़ज़ब हो गया
फुर्र हो गयी दाना लेकर
एक चिरइया कानी
नागफनी के जंगल में है
उस चिड़िया का डेरा
वह जादू का जंगल
उसमें होता नहीं सबेरा
भटकी उस वन में -
तब से ही राजकुमारी
करती है मनमानी
एक पुरानी जादूगरनी
उस जंगल में रहती
जनम-जनम से
एक विषैली नदी वहाँ है बहती
क्या बतलाएँ
जाता है बस्ती में बहकर
उसी नदी का पानी
एक आँख से हँसती रानी
एक आँख से रोती
ऊँघ रही पिंजरे में बैठी
कब से गूँगी तोती
बच्चो, मानो
बरसों पहले दादी से थी
हमने सुनी कहानी