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एक चेहरा भी तो चाहिए रूबरू / रविकांत अनमोल
Kavita Kosh से
इस तरह हो गए वो मिरे रू-ब-रू
हुस्न हो जिस तरह इश्क़ के रू-ब-रू
दूर ही दूर से बात मत कीजिए
आइए दो घड़ी बैठिए रू-ब-रू
आप ने मुँह जो फ़ेरा तो ये हाल है
ज़िन्दगी हो गई मौत के रू-ब-रू
जी रहे हैं तो हम बस इसी आस पर
आ कभी हमको दीदार दे रू-ब-रू
तू ही तू है दिलो जान में हाँ मगर
एक चिह्रा भी तो चाहिए रू-ब-रू
जिसने उनको बनाया है इतना हसीं
काश उसको भी हम देखते रू-ब-रू
मेरी ग़ज़लों के पर्दे में ऐ दोस्तो
रूह मेरी रही आप के रू-ब-रू