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एक जगह / महेश वर्मा
Kavita Kosh से
उदासी एक जगह है जैसे कि ये शाम
जहाँ अक्सर मैं छूट जाता हूँ ।
मुश्किल है बाहर का कुछ देखना-सुनना ।
उदासी की बात सुनकर
दोस्त बताते हैं नज़दीक के झरनों के पते
जहाँ बीने जा सकते हैं पारिवारिक क़िस्म के सुख ।
पता नहीं ये अँधेरा है,
या नींद,
या सपना,
जिस पर
गिरती रहती है झरने-सी उदासी ।
मेरी हर याँत्रिक चालाकी के विरुद्ध
मेरी अनिद्रा, मेरा प्रत्युत्तर है मुझको इस समय ।
और एक जगह है यह अनिद्रा भी, जिसके भीतर सोकर,
नींद भूल गई बाहर का संसार ।
पत्थर हो चुके इसको खोजने निकले राजकुमार ।