एक झुर्री चन्द सफ़ेद बाल और आइसोटोप-1 / तुषार धवल
(बड़े भतीजे कुँवर यशराज सिंह के लिये )
जी हाँ भला चंगा हूँ. दिन की मजूरी करता हूँ और रात की बागबानी ।
जैविक विकास क्रम में आदमी से मज़दूर बना। फिर हाँफता हुआ रोबोट। हर हाल में वशीभूत उस अदृश्य अनन्त पिंजड़े में स्वतन्त्र और उसी में परिभाषा उसकी स्वतन्त्रता की उत्तर आधुनिक औपनिवेशिक समय में जहाँ इतिहास अब ख़तरनाक माना जाता है और इसीलिए ग़ैरज़रूरी भी
अपने इतिहास के चालीस साल गिन रहा हूँ और उन चालीस वर्षों में अनगिनत कई और इतिहासीय मिथकों के कई युग गिनता हूँ पूर्वजों की अस्थियों में उस डी० एन० ए० में जाने कब से जीवित था जाने कब तक जीवित ही रहूँगा अनुवांशिक जिजीविषाओं में उद्गार में होने के उछाल में
एक शब्द तिरोहित होता है और यहाँ वहाँ फैल जाता है वाक्य की जकड़ से छूट कर
कवि हो जाता है
नाक से उगे एक सफ़ेद बाल की तरह
छिटका हुआ समय के सौन्दर्य बोध से
उसे कितना भी काटो वह रह-रह कर बढ़ ही आता है और अपनी पूरी एक नस्ल तैय्यार करता है
उसी आदिम कवि की मज्जा से उगी यह देह और उसका चालीसवाँ साल
दुनिया के संग मैं भी इस देह को प्यार से बधाई देता हूँ कि जिसने मुझे रखा है मेरी तमाम सदियों के साथ
कई दोस्तों ने जन्मदिन की पार्टी माँगी है। पत्नी के साथ बैठ कर हिसाब जोड़ता हूँ। जेब से बड़ा निकलता है इज़्ज़त का सवाल।
एक और फ़ोन कॉल बधाई और शुक्रिया का और वही रटे शब्द ‘टेम्प्लेट’ से निहितार्थों से बेज़ार बस चन्द शब्द जो सिर्फ़ कह दिए जाते हैं।
फ़ेसबुक पर वैसा ही अगला रेस्पॉन्स। और फिर जोड़ जुगत चालू। जेब देखें या इज़्ज़त।
ओह ! यह आईना भी !
आँखों की कोर पर एक झुर्री दिखाता है कुछ सफ़ेद बाल और गंजा होता सिर भी। एक डर्मेटोलोजिस्ट की आवाज़ कानों में गड़ने लगती है : “Sleeplessness, Mr. Singh ! You know ! आप सोता नहीं है।
चलो अच्छा है, नींद गहरा आता है, अच्छा है, पर उसको एक लेंथ भी तो मँगता है ना। आप सिरफ़ चार घण्टा सोएँगा तो कइसा चलेंगा ? बॉडी को प्रॉपर रेस्ट भी तो मँगता है ना ? काइके वास्ते इतना जगता है ? You are a Handsome Man... पण (पर) इतना काम करेंगा और सोएँगा नहीं तो जल्दी बूढ़ा हो जाएँगा! You know! This is Nature, and Nature has its own Rules !”
एक थका बोझ लिए आता हूँ। ज़िन्दगी चालीस की हो गई और अब तक कुछ भी नहीं कर पाया।
कुछ-कुछ भुलक्कड़-सा भी हो गया हूँ। याद आती हैं वे बातें, “T. D.! Your memory is too sharp Man !”
यह क्षय का प्रथम संकेत है अपनी देह से जूझते हुए...
देह मेरी ! माफ़ करना, अच्छा रहवासी नहीं हो सका तुम्हारा... रौंद डाला तुम्हें अपनी ज़िद में !
ज़िम्मेदारियाँ और जीने की भूख। इसी के बीच हर परिभाषा।
वही अदृश्य अनन्त पिंजड़ा
जिसकी ज़द में ही आजादियाँ तक़सीम होती हैं