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एक झुर्री चन्द सफ़ेद बाल और आइसोटोप-6 / तुषार धवल

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आईसोटोप रहा जन्म से तुममें तुम जैसा तुम से कुछ अलग थे न्यूट्रॉन मेरे
मेरा विक्षेप जिस ललकार का पीछा करता है
तुम उससे सुरक्षित हो
और तभी नींद का सुख तुम्हारे हिस्से आता है
तुम्हारे हिस्से आती है हँसी किसी पर भी कभी भी कि तुम्हारे अपने कमरे में ही आकाश है तुम्हारा
रात की बाग़बानी करता मजूर सितारों के ताप को सहता है अपनी आत्मा पर उनके गीतों में उतरता है छूता है उनके दर्द को बे-आवाज़
वह खोजता है केवल एक अभिव्यक्ति बिल्कुल उस जैसी उसकी अपनी
बाकी सभी रचनाएँ उस तक पहुँचने का रियाज़ भर हैं
अन्त कोई भी मुकम्मल नहीं होता चालीस के बाद भी उस गाँव में भी जिसके बाहर वे डरावने शब्द लिखे हैं जिसे देख कर धर्म दर्शन ईश्वर चिर-यौवन कामना में अपनी मृत्यु से सम्वाद करते अपनी जिजीविषाओं से अपनी अमरता रचते वहीं खड़े रह गए हैं