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एक तरफ़ भूख है दूसरी तरफ़ कारतूस / दिनकर कुमार

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एक तरफ़ भूख है दूसरी तरफ़ कारतूस
भूख के डर से दौड़ते-दौड़ते
दिशाओं को लाँघकर कहाँ से कहाँ पहुँचे
 कितनी सभ्यताएँ पीछे छूट गईं
हड़प्पा-मोहनजोदड़ो से लेकर कई अज्ञात सभ्यताएँ

एक तरफ़ भूख है दूसरी तरफ़ कारतूस
चारों तरफ फैला है बहेलिए का जाल
झोपड़ी में सड़क पर चाय की दुकान पर
नींद में भी बहेलिए गुर्राते हैं
अबोध बच्चों की मुस्कराहट खो जाती है
खो जाती है स्त्रियों की मुस्कान

एक तरफ़ भूख है दूसरी तरफ़ कारतूस
राजनीति का क्रूर कसाईबाड़ा है
हत्यारों की प्रेस-विज्ञप्ति है
पहरेदारों का स्पष्टीकरण है
घृणा केवल घृणा की भट्ठी में
मनुष्य की पहचान सुलग रही है