तुम न होगी तो ये मन कैसे लगेगा।
एक तुम हो तो मे' रा मन लग रहा है।
एक तुम थी तो ये जीवन,
पुष्पमय था, पल्लवित था।
"एक तुम हो पास" , इसमे-
सार जीवन का निहित था।
साथ मिलकर सींचकर जिसको सँवारा,
सूख जाएगा वह उपवन लग रहा है।
छोड़कर के एकदिन तुम
जाओ' गी, यों एकदम से।
स्वप्न में भी सोच सकते-
थे नहीं हम ये कसम से।
जाओ तुम आनंद से यौवन सँवारो,
यहीं तक था मेरा यौवन लग रहा हैं।
हाथ में मेरे तुम्हारा,
अब कभी न' हाथ होगा।
शब्द सहचर हैं हमारे,
अब उन्ही का साथ होगा।
विरह-कवि को अब मिला है विषय मन का-
अब निखर आएगा लेखन लग रहा है।
तुम न होगी तो ये मन कैसे लगेगा।
एक तुम हो तो मेरा मन लग रहा है।