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एक तेरी नज़र बदलते ही / रचना उनियाल
Kavita Kosh से
एक तेरी नज़र बदलते ही,
अश्क़ हैं आँख में तड़पते ही।
बात तनहा रही दिलों में अब,
प्यार के पल सनम बिछड़ते ही।
हाल दिल का अगर बतायें तो,
फ़ुरसतें खो रहीं हैं मिलते ही।
इश्क़ का जाम पी सकेंगे गर,
साँस में साँस के मचलते ही।
ग़ैर जानम मुझे न तुम कहना,
इश्क़ की बेख़ुदी के ढलते ही।
बात अहसास दिल जवाँ रहता,
नफ़रतों के दिलों पनपते ही।
कह सकूँ शेर को कहे ‘रचना’,
वाह की दाद हो जो कहते ही।