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एक तेरे नाम की ही पुस्तकें पढ़ते रहे / कुँवर बेचैन
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एक तेरे नाम की ही पुस्तकें पढ़ते रहे
इस तरह भी मंदिरों की सीढ़ियाँ चढ़ते रहे।
वक़्त तस्वीरें चुराता ही रहा हम भी मगर
नित नयी तस्वीर दिल के 'फ्रेम' में मढ़ते रहे।
एक या दो की नहीं, है ये कई जन्मों की बात
एक पुस्तक थी, 'कवर' जिस पर नए चढ़ते रहे।
उँगलियाँ तो एक सीमा तक बढ़ीं फिर रुक गईं
और उसके बाद बस नाखून ही बढ़ते रहे।
हमने दो हिस्सों में अपने आप को बांटा 'कुँअर'
नाम उसका रात-दिन लिखते रहे, पढ़ते रहे।