(1)
जब कि मेरी पत्नी मेरी बगल में नींद में लेटी हुई है और
युद्ध बहुत पहले ख़त्म हो चुके हैं ।
और घर में तकिये पर मेरा सिर विश्राम कर रहा है और
सूनी मध्यरात्रि बीत रही है
और सन्नाटे के भीतर से, अन्धेरे के भीतर से मैं सुन रहा हूँ,
केवल अपने बच्चे की साँस सुन रहा हूँ,
वहाँ कमरे में मैं जैसे ही जागता हूँ यह दृश्य मुझको उत्पीड़ित करने लगता है;
वहाँ मुठभेड़ शुरू हो जाती है और तब उस अयथार्थ
फन्तासी में झड़पें प्रारम्भ हो जाती हैं, वे सावधानी से आगे रेंग
रहे हैं, मैं रह -रह कर तड़ाक् -तड़ाक् सुन रहा हूँ,
मैं विभिन्न प्रक्षेपास्त्रों की आवाज़ें सुन रहा हूँ, राइफ़ल की गोलियों की लघु ठाँय-ठाँय,
मैं छोटे-छोटे उजले बादल छोड़ते हुए गोलों को फटते
देखता हूँ, मैं बड़े गोलों के गुज़रने के साथ उनकी
चीख़ सुनता हूँ,
पेड़ों से होकर छर्रे की तरह हवा की गूँज और भनभनाहट,
युद्ध (अब मुठभेड़ और भी कोलाहलपूर्ण और तेज़ हो गई है)
(2)
तोपख़ाने में मेरी आँखों के सामने यह सभी दृश्य ब्योरेबार दिखाई देते हैं,
धमाका और धुआँ, अपनी राइफ़लों पर सैनिकों का गर्व,
प्रधान बन्दूकची अपनी बन्दूकों की सीध बाँधता, निशाना बनाता
और सही समय के लिए पलीते का चुनाव करता है,
मैं गोलाबारी के बाद उसे एक ओर झुकते और परिणाम
को दर्ज करने के लिए उत्सुकता से दूर-दूर तक
देखते पाता हूँ;
मैं कहीं और एक रेजीमेन्ट के धावा बोलने की आवाज़
सुनता हूँ
(इस बार युवा कर्नल तलवार घुमाते हुए नेतृत्व करता आगे
चल रहा है)
मैं शत्रु की गोलाबारी से विभाजित हो कर अन्तरालों को
देखता हूँ (जो तुरन्त भर दिए जाते, कोई विलम्ब नहीं होता)
मैं दमघोंटने वाले धुएँ की साँस लेता हूँ, तब सपाट बादल
सब को ढँकते हुए नीचे मँडराते हैं,
इस समय कुछ सेकेण्ड की विलक्षण शान्ति, किसी भी पक्ष से
कोई गोली नहीं चली,
इसके बाद ही अफ़सरों की व्यग्र ललकारों और आदेशों के साथ
पहले से कहीं अधिक कोलाहल होने लगा,
जब कि रणभूमि के किसी दूरवर्ती भाग से हवा मेरे कानों तक
हर्षध्वनि (किसी विशेष सफलता) का कोलाहल बहा ले
आती है
और अनवरत दूर या समीप तोप की आवाज़ (आत्मा की
गहराइयों में सपनों में भी एक शैतानी उल्लास और समस्त
पूर्ववर्ती पागल
और लगातार पैदल सेना द्वारा स्थान बदलते रहने की शीघ्रता,
तोपख़ानों, घुड़सवार सैनिकों का यहाँ — वहाँ होते रहना,
(मैं गिरने, मरने पर ध्यान नहीं देता, पिछले भाग में कुछ सैनिक
लँगड़ा रहे हैं)
अपराध, उत्तेजना, आक्रमण, निकट ही सरपट या पूरे
वेग से घोड़ा दौड़ाते हुए युद्ध परिसहायक
लघु आयुधों की फट-फट, राइफ़लों की चेतावनी भरी ठाँय-ठाँय
(अपने दृश्य-दर्शन में इन्हें सुनता या देखता हूँ)
और हवा में फटते बमों और रात में रँग-बिरँगे रॉकेटों को ।
(अब मुठभेड़ और भी कोलाहलपूर्ण और तेज हो गई है )
मूल अँग्रेज़ी से अनुवाद : दिनेश्वर प्रसाद
लीजिए, अब यही कविता मूल अँग्रेज़ी में पढ़िए
Walt Whitman
An Artilleryman’s Vision
WHILE my wife at my side lies slumbering, and the wars are over long,
And my head on the pillow rests at home, and the vacant midnight
passes,
And through the stillness, through the dark, I hear, just hear, the
breath of my infant,
There in the room, as I wake from sleep, this vision presses upon me:
The engagement opens there and then, in fantasy unreal;
The skirmishers begin--they crawl cautiously ahead--I hear the
irregular snap! snap!
I hear the sounds of the different missiles--the short t-h-t! t-h-t!
of the rifle balls;
I see the shells exploding, leaving small white clouds--I hear the
great shells shrieking as they pass;
The grape, like the hum and whirr of wind through the trees, (quick,
tumultuous, now the contest rages!)
All the scenes at the batteries themselves rise in detail before me
again;
The crashing and smoking--the pride of the men in their pieces;
The chief gunner ranges and sights his piece, and selects a fuse of
the right time;
After firing, I see him lean aside, and look eagerly off to note the
effect;
--Elsewhere I hear the cry of a regiment charging--(the young colonel
leads himself this time, with brandish'd sword;)
I see the gaps cut by the enemy's volleys, (quickly fill'd up, no
delay;)
I breathe the suffocating smoke--then the flat clouds hover low,
concealing all;
Now a strange lull comes for a few seconds, not a shot fired on
either side;
Then resumed, the chaos louder than ever, with eager calls, and
orders of officers;
While from some distant part of the field the wind wafts to my ears a
shout of applause, (some special success;)
And ever the sound of the cannon, far or near, (rousing, even in
dreams, a devilish exultation, and all the old mad joy, in the
depths of my soul;)
And ever the hastening of infantry shifting positions--batteries,
cavalry, moving hither and thither;
(The falling, dying, I heed not--the wounded, dripping and red, I
heed not--some to the rear are hobbling;)
Grime, heat, rush--aid-de-camps galloping by, or on a full run;
With the patter of small arms, the warning s-s-t of the rifles,
(these in my vision I hear or see,)
And bombs busting in air, and at night the vari-color'd rockets.